Wednesday, May 4, 2011

नये गांधी का जन्म


जय प्रताप सिंह

‘सत्तर साल का यह बुड्ढा आखिर कहां से आ टपका। यह चाहत क्या है? क्या हमारी लुटिया डुबोएका? क्या पड़ा था इन नेताओं को, अरबों रूपये एक ही साथ गटक जाने का। मिल-बांट कर थोड़ा -थोड़ा खाते तो शायद कुछ वर्षों तक ऐसे ही चलता रहता। ‘‘हम भी खाएं, तुम भी खाओ,’’ वाली कहावत ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन शवाल यह है कि हमारा काम कैसे चले।’’ सेठ करोड़ीमल कमरे में चहलकदमी करते हुए बड़बड़ाए जा रहे थे। उन्होंने बड़ी मुश्किल से दोनों हाथों को अपनी तोंद पर रखा और उसे सहलाते हुए विखरे अखबार के पन्नों को हाथ में कस के पकड़ लिया। और एक हाथ से मसलन को कमर के पास लगाकर बैठ गए।

जिस भी अखबार को देखते उसी पर मोटे-मोटे अक्षरों में ‘भ्रष्टाचार मिटाना है, जनता का लोकपाल विधेयक बिल पास कराना है,’ लिखा हुआ पाते। उन्होंने अपने सिर को जोर से दबायाऔर सोच की मुद्रा में डूब गये। ‘‘पिछले साल तो कारखाने में लाखों का बिजली गिल भुगतान करने के बजाय अधिकारियों को मात्र दस हजार रुपये देकर खत्म करवा दिया था। इस साल क्या होगा? अनाज भी गोदामों में भरा पड़ा है।’’ ऐसे ही कई सवाल उनके दिमाग में उमड़-घमड़ रहे थे।

‘‘सेठ जी राम राम।’’ सेठ जी ने पीछे मुड़ कर देखा तो शहर के ससम्मानित नेता राम भरोसे मुस्कुराते हुए खड़े थे। ‘‘आइए, बैठिए नेताजी।’’ सेठ करोड़ीमल ने उन्हें सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए कहा। ‘‘कौन-सी विपत्ति आ पड़ी सेठजी। चेहरे पर क्यों बे-मौसम चिंता को बुलावा दे रखे हो।’’

रामभरोसे ने सोफे पर बैठते हुए कहा। ‘‘अब क्या होगा? कैसे हम लोगों की दाल गलेगी! इस बुड्ढे ने तो पूरे देश में हलचल पैदा कर रखी है। रहा सवाल आपका तो आप भी नहीं बचोगे।’’ ‘‘सठिया तो नहीं गये करोड़ीमल। क्या तुम्हे नहीं मालूम कि यदि हम खाना जानते हैं, तो पचााना भी जानते हैं। रहा सवाल आप लोगों की सेवा का तो ठााई, वह तो मैं करुगा ही। आखिर मैने आपका नमक जो खाया है। आप ही के पैसे से चुनाव जीता हूं और आप की ही दुआ से पांच साल में करोड़पति भी बन चुका हूं।रहा सवाल जनता का तो वह भेड़ की सिवा कुछ नहीं है। आज वह इस बुड्ढे पर इतरा रही है तो कल कोई ऐसा पाशा फेकेंगे कि सबकुछ भूल जायेगी। वह हमे ही अपना रहनुमा मान लेगी।’’ नेताजी मूछों पर हाथ फेरते हुए कुटिल मुस्कान के साथ चुप हो गए।

‘‘आप हंस रहे हैं, और यहां है कि मेरी जान निकल रही है। मेरे पोते को नौकरी भी दिलवानी है। उसके लिए दस लाख रुपये में बात भी हो गयी है। लेकिन-----।’’

‘‘आप तो नाहक ही परेशान हो रहे हो! सबकुछ ऐसे ही चलता रहेगा। भगवान पर भरोसा रखो वह हमारा कुछ भी नहीं बिकगड़ेगा। हम इतना जो चढ़ावा देते हैं। आखिर उसका तो फल हमें मिलेगा ही। चलो, जल्दी से नहा धो कर पूजा-पाठ कर लो और शाम को अनशन पर बैठना है।’’ नेता जी ने सोफे से उठते हुए कहा।

‘‘अनशन, अरे...बाप..रे..........। यह कैसे हो सकता है? हम लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन कर सकते हैं क्या?। आप पाकल तो नहीं हो गए हो।

‘‘पागल हों हमारे दुश्मन। आपको नहीं मालूम कि हमारे ही लोग आज उनका समर्थन कर रहे हैं। यही नहीं बल्कि जनता भी हमारा ही साथ दे रही है। क्या तुम्हे यह नहीं मालूम कि हमारे नये गांधीवादी नेता ने कहा है- भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने में जनता के प्रतिनिधि शामिल होंगे। प्रतिनिधि का मतलब शोसल वर्कर। वही शोशल वर्कर जिनमें हमारे बिरादरी के लोगों का भरमार है। ’’ उन्होंने एक बार फिर राम-राम किया और चले गये।

शहर के शहर के मेन चौक पर एक लम्बी चौड़ी दरी पर चमचमाती हुई सफेद चादरें बिछी हुई थीं। किनारे-किनारे ऊंचे ऊंचे मसलन लगे हुए थे। सामने महात्मा गांधी की तस्वीर टंगी थी। उसी के बगल में नये गांधी की भी तस्वीर थी, जो हाथ में तिरंगा लिए अनशन पर बैठे दिखाए गये थे। मंच पर आसीन शहर के सम्मानित और ईमानदार नेता राम भरोसे, सेठ झींगुर लाल, सेठ कुंदन लाल, सेठ करोड़ीमल, सामाजिक कार्यकर्त्ता सेठ भकोले दास, जो सेठ करोड़ीमल के करीबी रिस्तेदार थे, के अलावा कई ईमानदार और जुझारू नेता आसीन थे।

मंच पर खड़ हो कर जनता के इन सेवकों ने हाथ में फूलमाला लिए- भ्रष्टाचार कुर्दाबाद, जन लोकपाल बिल पास हो, जनता को जगाएंगे-भ्रष्टाचार को मिटाएंगे आदि नारों को लगाते हुए बापू की तस्वीर को फूलमालाओं से ढक दिया। जैसे मानो कह रहे हों कि बापू तुम इसी तस्वीर में पड़े रहो, कुछ मत देखो। हम तुम्हारा काम कर ही देंगे। मंच पर उपस्थित लोगों ने एक-दूसरे को माला पहनाया और सिर पर गांधी टोपी लगाए ‘‘रघुपति राघव राजाराम, पतितपावन सीता राम,’’ भजन गाने में मशगूल हो गए।

‘मंच पर आसीन जनता के सेवक सेठ करोड़ीमल, सेठ झींगुलाल, सेठ कुंदनलाल और प्रखर सामाजिक कार्यकर्त्ता सेठ भकोले दास एवं उपस्थित देवतुल्य मेरी प्यारी जनता।’ लोगों का अभिवादन करते हुए नेता रामभरोसे ने अपना भाषण जारी रखा।

‘‘मेरी प्यारी जनता एवं देशवासियों, बड़े दुख की बात है कि आज पूरा देश भ्रष्टाचार में डूब चुका है। भ्रष्टाचार ऐसी छुआछूत की बीमारी है कि जिसको एक बार छू लेती है, उसका जन्म जन्मांतर साथ नहीं छोड़ती। ऐसा नहीं कि पूरा देश भ्रष्ट है, बल्कि इसी देश और समाज में हमारे जैसे ईमानदार लोग भी मौजूद हैं। जो इस बीमारी को खत्म करने का वीड़ा उठा रखे हैं। धन्य हैं आप लोग जिसे सेठ करोड़ीमल ओर सामाजिक कार्यकर्त्ता सेठ भकोले दास जैसा मार्गदर्शक मिला है।’’ मंच पर बैठे लोगों ने तालियां बजाई।इसके साथ ही पूरा सभा तालियों से गूंज उठा।

‘‘मैं वायदा करता हूं कि हम महात्मा गांधी की राह पर चलकर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाले कानून को लागू करवा कर ही दम लेंगे। हम तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगे, जबतक की हमारे गांधीवादी नेता अपना अनशन नहीं तोड़ते। हम शहर की जनता को साथ लेकर दिल्ली पहुंचेंगे। चाहे इसके लिए मेरी जान ही क्यों न चली जाए।’’ तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सेठ करोड़ीमल और नेता रामभरोसे की जयजयकार चारो ओर गूंज उठी।

मंच के चारों ओर मीडिया वालों की जमघट लग गई। नेता रामभरोशे, करोड़ीमल सहित मचासीन लोगों ने अपनी अपनी फोटो खिंचवाने में मस्त रहे। हर कोई उनके इर्द-गिर्द आश लगाए घूमता रहा कि शयद मेरा भी फोटो नेताजी के साथ खिंच जाए।

सेठ कारोड़ीमल ने अपनी धोती के लटक रहे खंूट को पकड़ कर खड़े हुए और एक हाथ से टोपी को ठीक करते हुए माइक के सामने खड़े हो गए।

‘‘मंच पर उपस्थित आदरणीय ईमानदार व कर्मठ नेता राम भरोसे जी एवं मंच पर उपस्थित महानुभावों। मेंर प्यारी जनता!यह कहने की जरूरत नहीं है कि हम लोग यहां पर आखिर किस लिए इकट्ठे हुए हैं। देश की इस दैनीय स्थिति को देख कर हमें बहुत बड़ा आघात पहुंचा है। गांधी के इस देश में इतने भ्रष्टाचारी हों, यह हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे। लेकिन यह भी सच्चाई है- एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। और दोष सभी मछलियों पर लगता है। हम उस नये गांधी के आभारी हैं जिसने हमारी आँखें खोल दी हैं। हम तब तक इस भ्रष्टाचार से लड़ेंगे, जब तक कि हमारे शरीर में एक भी खून का कतरा शेष रहेगा।’’ उन्होंने सिर को नीचे झुकाया और धोती के पिछल्ले छोर को मजबूती के साथ पकड़ कर नैनों से बह रहे अश्रुधारा को पोंछा और अपनी बात जारी रखी। जनता तालियों की गड़गड़ाहट से इस महान नेता का सम्मान करने में पीछे नहीं थी। वह धन्य थी ऐसी महन हस्तियों का साथ पाकर।

‘‘भाइयों!अब कल से हम मोमबत्ती जलाकर मार्च निकालेंगे जिसमे आप सबका सहयोग चाहिए।’’ हम साथ हैं, हम साथ हैं....। एक साथ सैकड़ों हाथ उठ गए।

कहीं भी अनशन हो या मार्च, वह छात्रों का ही क्यों न हो, उसकी अगुवाई सेठ करोड़ीमल और उनके हमससथी नेतृत्व दे रहे थे।

‘‘राम राम करोड़मल भाई। क्या अकेले ही सारी शराब गटक जाओगे या.......।’’रामभरोसे ने बैठका में पहुंचते ही सवाल किया।

‘‘आवो! रामभरोसे, भई आपने तो कमाल कर दिया। पूरा पाशा ही पलट दिया।’’ यह कहते हुए करोड़ीमल हहाक से गले मिले और एक कुर्सी उनकी ओर खिसका दिया। और लोगों ने भी हंसी के ठहाके लगाए।

‘‘देखते जाओ करोड़ीमल, सभी कुछ हमारे ही हक में होगा। मैने कहा था न, जनता भेंड़ है। उसे जिधर चाहो मोड़ दो। बस पीछे मत मुड़ना, अपनी जुबान पर जरा काबू रखना। सभी जगहों पर अपने ही लोग मौजूद हैं। ’’ रामभरोसे शराब की चुश्की लेते हुए जवाब दिया। देर रात तक शराब और कबाब का दौर चलता रहा और शहर के यह प्रतिष्ठ व सम्माननीय लोग नशे में ण्ूमते रहे।

उधर, हर किसी की जुबान पर था कि देश के सामाजिक कार्यकर्त्ता इस आंदोलन में कूद पड़े हैं। अब भ्रष्टाचार खत्म हो जएगा, खत्म हो जएगा।