Wednesday, August 11, 2010

मोबाइल के बदलते रंग

प्रतिमान उनियाल
कभी आपने सोचा है कि एक छोटी सी चीज जो हमेशा साथ लेकर चलते हैं, जो आपके अभिन्न मित्र से भी ज्यादा करीब है। जिसके लिए आप अपने व्यस्ततम समय मे से भी कुछ समय निकाल कर इतना बात करते हो कि आपका बॉस और पत्नी दोनों ही गुस्सा होते हैं। जिसकी मधुर आवाज से आपका सबेरा होता हो, दिन रात आपके पास हो और जिसका जन्म करीब पचीस साल पहले हुआ हो। उस समय इसका वजन करीब एक किलो और कीमत तकरीबन एक लाख रुपये रही हो। चौंकिए मत, हम आपके मोबाइल फोन की बात कर रहे हैं।
वर्ष 1983 में मोटोरोला ने अपने 15 वर्षों की अथक शोध और 100 मिलियन डॉलर के निवेश के पश्चात दुनिया के सामने पहला मोबाइल फोन 'डायना टी ए सी 8000 एक्सÓ पेश किया। इस 13 इंच लंबे ईंट नुमा मोबाइल की कीमत तीन हजार डॉलर थी।
वैसे मोबाइल फोन के विकास की गाथा 1908 से शुरू होती है जब केंटकी के एक सज्जन नाथन बी स्टबलफील्ड के वायरलैस टेलीफोन को केव रेडियो के नाम पेटेंट कराया (यूएस पेटेंट संख्या 887357)। यूरोप में बॢलन तथा हेमबर्ग के बीच चलने वाली यात्री रेल में 1926 में रेडियो टेलीफोनी शुरू हुई। 1946 में तत्कालीन सोवियत संघ के इंजीनियर जी शापीरो और आई जहारचेंको ने अपनी कार में रेडियो मोबाइल का सफल परीक्षण किया। इस मोबाइल की पहुंच करीब 20 किलोमीटर तक थी। 1957 में सेवियत संघ के इंजीनियर लियोनिडकुप्रियानोविच ने मास्को में पोर्टेवल रेडियो फोन बनाया जिसका नाम रखा गया एलकेवन (यूएसएसआर पेटेंट संख्या 115494, 1-11-1957)। इस फोन का वजन 3 किलो था और रेंज करीब 30 किलोमीटर था। इसकी बैटरी 20 से 30 घंटे चलती थी। पहला सफल सार्वजनिक मोबाइल फोन नेटवर्क फिनलैंड का एआरपी नेटवर्क था जोकि 1971 में शुरू हुआ था।
अब यह ईंटनुमा वस्तु 100 ग्राम वजनी एक ऐसा सुरीला यंत्र बन गया है जो संचार का साधन के अलावा आपके मनोरंजन का साधन भी बन गया है। अब आप मोबाइल से फोटो व वीडियो बना कर यादों में संजो सकते हैं। इंटरनेट के माध्यम से देश विदेश ज्ञान बटोर सकते हैं, गाने व फिल्में देख सकते हैं, दफ्तर का काम ईमेल या चुङ्क्षनदा एपलीकेशन के माध्यम से कर सकते हैं। बहुत जल्द आप पैसों का लेनदेन भी मोबाइल से कर सकेंगे। मतलब यह कि मोबाइल एक ऐसी जरूरत की चीज बन गया है कि आपका काम इसके बनिा एक मिनट के लिए भी नहीं चल सकता। यकीन नहीं आ रहा तो ऐसे वयक्ति से पूछ कर देखिये जिसका फोन हाल ही में चोरी हो गया हो। उसका हाल ऐसा होगा जैसे वह दुनिया से कट गया हो।
भारत में मोबाइल फोन सेवा की शुरुआत अगस्त 1995 से हुई थी। उस समय मोबाइल सेट करीब पचास हजार रुपये का मिलता था। कालरेट करीब 32 रुपये प्रति मिनट और इनकङ्क्षमग 16 रुपये प्रति मिनट होती थी। पंद्रह साल बाद 2010 में नया मोबाइल सेट 500 रुपये से भी कम का आता है। इसका काल रेट 10 पैसे प्रति मिनट से भी कम है। टेलीकॉम रेगुलेट्री अथॉरिटी ऑफ इडिया के डेटा के अनुसार मई 2010 में मोबाइल कनेक्शन की संख्या 601.22 मिलियन हो गई है।
भारत में आज सरकारी और निजी क्षेत्र की पंद्रह कंपनियां मोबाइल सेवायें दे रही हैं। तकरीबन सभी के कॉल रेट एक समान हैं। बाजार के 84.63 प्रतिशत में सरकारी कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल का कब्जा है। 3जी फोन सेवा में भी सरकारी कंपनियों ने बाजी मारी है। 3जी फोन के माध्यम से आप तेज स्पीड का इंटरनेट कर सकते हैं और एक दूसरे से वीडियो कॉल के जरिये संपर्क कर सकते हैं। अमेरिका में तो 4जी सेवा प्रारंभ हो चुकी है। लेकिन भारत में अभी भी 3जी की ही जंग चल रही है। इतना तो साफ है कि आने वाले समय में मोबाइल फोन का इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होगा कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते। 4जी सेवा के द्वारा आप टीवी, एयरकंडीशन, माईक्रोवेव इत्यादि ऑफिस में बैठे-बैठे ही नियंत्रित कर सकेंगे ताकि जब आप घर पहुंचें तो आपको तुरंत ठंडा मिले, टीवी में आपका मनपसंद कार्यक्रम चल रहा हो और और आपके लिए लजीज व्यंजन तैयार हो सके।
तो एक बार फिर अपने प्रिय मोबाइल फोन की तरफ देखें और विज्ञापन की प्रसिद्ध पंक्ति को याद करके मुस्कुरायें- ''कर लो दुनिया मुटठी में।ÓÓ