Tuesday, July 6, 2010

बिना चलाए पानी देता है ये हैंडपंप

खेती को बचाओ...

कैसे बचेगा पश्चिम यूपी का किसान?

-जयप्रताप सिंह, गाजियाबाद
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिक उपजाऊ मंडल की मिट्टी लगभग बीमार हो चुकी है। रासायनिक खादों और खतरनाक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी उर्वरता लगभग खत्म हो गई है। कृषि विभाग ने मंडल के पांच जिलों के मिट्टी के 81 हजार से अधिक नमूनों की जांच करायी जिसका परिणाम लगभग चौंकाने वाला था। जरूरत के हिसाब से सल्फर, जिंक और आयरन जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट्स बहुत कम मिले। गंगा-यमुना के बीच का दोआब क्षेत्र अच्छी खेती के लिए मशहूर है, लेकिन अधिक उपज का लालच किसानों के लिए मुसीबत बनने लगा है। वह रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं, जिससे पैदावार तो बढ़ रही है, लेकिन मृदा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। जरूरी पोषक तत्व धीर-धीरे मिट्टी से गायब होते जा रहे हैं। इस स्थिति पर शासन ने मंडल में 10, 20 और 31 मई को विशेष अभियान चलाकर मिट्टी के कुल 81465 नमूने लेकर जांच करायी थी। मेरठ की क्षेत्रीय भूमि परीक्षण प्रयोगशाला में नमूनों की जांच अभी भी जारी है। अब तक हुई जांच के जो परिणाम सामने आये हैं उनमे जरूरी पोषक तत्व लगभग गायब हो चुके हैं। संयुक्त कृषि निदेशक एमपी सिंह ने बताया कि अच्छी फसलों के लिए मिट्टी में कुल सोलह पोषक तत्व जरूरी होते हैं, इनमें सबसे ज्यादा जरूरी जीवाश्म कार्बन है। इसकी मात्रा कम से कम 0.8 फीसदी होनी चाहिए, लेकिन यह 0.4-0.6 फीसदी तक मिल रही है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष यह 0.2-0.3 फीसदी तक थी। सूक्ष्म तत्वों सल्फर, जिंक और लोहे की मात्रा भी बहुत कम पायी गयी है। उन्होंने बताया कि इसके बचाव के लिए किसानों को जागरूक करना जरूरी है तभी इस पर रोक लगाया जा सकता है। बिना जागरूक किये खेती को बचा पाना मुश्किल है। पोषक तत्व और उनकी स्थितिजीवाश्म कार्बन 0.8 0.4-0.6, सल्फर 15.0 10.0-15.0, जिंक (पीसीएम) 1.20 0.6-1.2, लोहा (पीसीएम) 8.0 4.0-8.0, कॉपर (पीसीएम) 0.4 पर्याप्त, मैगनीज (पीसीएम) 4.0 पर्याप्त, पश्चिम की खुशहाली बुंदेलखंड पहुंचीकई राज्यों में वेस्ट यूपी के किसानों की मेहनत और खेती के प्रति उनके लगाव की लोग दाद देते थे, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल ही दयनीय है। इनकी इसी दिलेरी को देखते हुए किसानों को समृद्ध करने के लिए करीब दो दशक पहले एक परियोजना मिली थी। भूमि संरक्षण और जल संचय के लिए संचालित इस परियोजना को रामगंगा कमांड के नाम से जाना जाता था। अब इसी सौगात को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से छीन कर राहत पैकेज के साथ-साथ बुंदेलखंड को दे दिया गया। परियोजना के बुंदेलखंड जाने के बाद परियोजना के दफ्तरों पर ताले लटक गए, जिससे किसानों का भविष्य अंधकार में लटकता दिखाई देने लगा। केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित बुंदेलखंड इलाके के लिए 4506 करोड़ रुपये राहत पैकेज देने का निर्णय किया है। प्रदेश सरकार को यहां मृदा और जल संरक्षण वाले कार्यक्रम चलाने के निर्देश दिए गये हैं। इसके अनुपालन में उत्तर प्रदेश भूमि विकास एवं जल संसाधन विभाग ने मध्य, पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 12 जनपदों में मृदा एवं जल संरक्षण की 17 परियोजना यूनिटों को यहां से स्थानांतरित करने का प्रस्ताव तैयार किया है। बिजनौर की रामगंगा कमांड परियोजना को नजीबाबाद से बुंदेलखंड के हमीरपुर में शिफ्ट कर दिया गया है। शासन ने यहां करीब 18 साल पहले रामगंगा कमांड परियोजना नजीबाबाद में स्थापित कराई थी। अलीगढ़ के अतरौली तहसील की रामगंगा परियोजना को महोबा व खैर की परियोजना को ललितपुर स्थानांतरित किया गया हैं। बुलंदशहर में चल रही रामगंगा कमांड खुर्जा, सिकंदराबाद एवं डिबाई यूनिटें हटाई जा रही हैं। जुलाई माह से खुर्जा एवं सिकंदराबाद यूनिट महोबा और डिबाई यूनिट हमीरपुर में कार्य करना शुरू कर देगी। बहराइच यूनिट को झांसी, नैनी यूनिट को चित्रकूट, आजमगढ़, सिकंदराबाद , खैर (अलीगढ़) खुर्जा (बुलंदशहर) को महोबा भेजा जाएगा। इसके अलावा डिबाई (बुलंदशहर) नजीबाबाद (बिजनौर) हापुड़ (गाजियाबाद) हमीरपुर शिफ्ट किया है। इसके अलावा बुंदेलखंड के बांदा, जालौन, ललितपुर आदि इलाके में कई यूनिट स्थानांतरित किए गए हैं।

-एक कदम आगे से साभार-