Monday, June 7, 2010

इश्क गुनाह क्यों?

कल इश्क के कूचे में इक नौजवां मारा गया, हाथ मलती थी कज़ा वो बे-कज़ा मारा गया

सदियों पहले राजे-रजवाड़ों के समय में किसी ने लिखा था कि कल इश्क के कूचे में इक नौजवां मारा गया, हाथ मलती थी क ज़ा वो बे-कजा मारा गया। प्राचीन काल में एक इश्क करने वाले नौजवान को बेमौत मारे जाने पर साहित्य लिखा गया। उस पर गहन चिंतन हुआ। उस समय शहंशाहों के दरबार हुआ करते थे लेकिन अब लोकतंत्र है। उस समय और आज के समय में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है। आज पुरानी परंपराओं को तोड़ कर आगे बढऩे वाले प्रेमी युगलों की सुंख्या में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो अजीत-अंशु के बाद मनवीर-रजनी प्रकरण भारतीय लोकतंत्र पर ही सवाल उठा रहे हैं कि आखिर यह कैसा लोकतंत्र है? जहां पर लोगों को खुलकर प्यार करने का भी अधिकार नहीं हैं। एक तरफ तो लोकतंत्र में सबको अपनी आजादी हासिल है तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार क्यों नहीं है? कानून किसके हिसाब से चल रहा है? जिनके अंतिम संस्कार कर दिये गये, वे जिंदा लौट रहे हैं। यहां पर तो मूंछ का सवाल होता है। मूंछ की खातिर लोग तलवारें खींच लेते हैं। बेरहमी से अपनों का ही कत्ल कर देते हैं। समाज तेजी के साथ बदल रहा है। युवाओं के अंदर पुरानी मूल्य-मान्यताओं के खिलाफ विद्रोह के अंकुरण फूटना शुरू हो गये हैं। वर्षों से दबा हरित प्रदेश मोहब्बत का जंगल बनकर उभर रहा है जिसमें लाशों की गुत्थियां गढ़ी जा रही हैं। प्रेमी-प्रेमिकाओं ेको सरेआम गोलियों से उड़ा दिया जाता है। कहीं-कहीं तो पत्थर से मार-मार कर बेरहमी से हत्या कर दिया जाता है। इसके बावजूद प्रेमी युगल प्यार करने से पिछे नहीं हट रहे हैं। जितनी तेजी के साथ इसे दबाने का प्रयास किया जा रहा है, उतनी ही तेजी से प्यार करने की परंपरा भी बढ रही है। यह अलग सवाल है कि कुछ प्रेमी युगल कठिन संघर्षों की राह के डर से अत्महत्या कर ले रहे हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि उनके अंदर वद्रोह के अंकुर मरे नहीं हैं बल्कि तेजी के साथ अंकुरित हो रहे हैं। इन हत्याओं का हिस्सा पुलिस भी बन रही है और वर्कआउट के चक्कर में लाशों से खिलवाड़ जारी है। दिखती नहीं प्रशासन की पहल-इस तरह के कशों का पुलिस इतिश्री करने में भी काफी उतावली रहती है। इसी तरह का एक घटना मुजफ्फरनगर स्थित नई मंडी कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला शांति नगर में गत 6 मई को पुलिस ने एक युवक का शव बरामद किया था। इसकी शिनाख्त कूकड़ा गांव निवासी अजीत सैनी पुत्र ओमवीर सैनी के रूप में पुलिस भी हुई थी। मृतक के परिजनों ने उसके 30 अप्रैल से गायब की भी पुष्टि की थी। हत्या के आरोप में अजीत की प्रेमिका अंशु के पिता नरेंद्र तोमर और भाई अनुज को पुलिस ने उठा लिया था। आज के वैज्ञानिक युग में पुलिस के पास तर्क था कि अंशु के परिजन नई मंडी में रहते हैं, जहां अजीत की लाश मिली। इससे पहले बुढ़ाना क्षेत्र में एक युवती की लाश मिली थी तो पुलिस ने उसे अंशु की मान लिया। 9 मई को पुलिस जब आनर किलिंग के मामले में अंशु के भाई और पिता को जेल भेज रही थी कि उसी समय प्रेमी युगल अजीत और अंशु थाने पहुंच गये। इस पर सवाल उठना लाजमी था कि पूर्व में अजीत और अंशु की बताई गई लाशें फिर किसकी थीं? मुजफ्फरनगर पुलिस यह सब देख कर हैरान तो हो गई लेकिन उसकी कार्यशैली का परिणाम एक बार फिर वही ढाक के तीन पात साबित हुये। आज तक इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाई है। पड़ोसी राज्यों की पुलिस से संपर्क के अलावा पोस्टर, इश्तिहार के जरिये शिनाख्त की कार्रवाई आज तक चल रही है। ऐसी ही कहानी देश के नवीनतम शहर और इंडस्ट्रियल के रूप में सुमार नोएडा में दोहराई गई। प्रेमी युगल के अंतिम संस्कार के बाद रजनी भी अपने प्रेमी मनवीर के साथ शादी करके वापस आ गयी। चौबीस दिन पहले एक युवती की लाश मेरठ के कुरड़ी गांव में मिली थी। पुलिस और परिजनों ने इसे रजनी की बताकर अंतिम संस्कार कर दिया था। यह युगल 13 अप्रैल को फरार हुआ था। यहां भी वही सवाल कि आखिर रजनी की बताई गई लाश किसकी थी? नोएडा पुलिस अब दावा कर रही है कि वह लाश मोदीनगर के सीकरी गांव की मंजू रानी की थी। पुलिस महकमें का कहना है कि मृतक पूर्व में भट्ठे पर काम करती थी और वहीं काम करने वाले गाजीपुर के राजकुमार उर्फ राजीव मुंशी के साथ दो महीने पहले कही फरार हो गयी थी। दोनों को तलाश कर पंचायत ने शादी का फैसला सुना दिया लेकिन राजीव पंचायत के डर से भाग खड़ा हुआ था। कूड़ी गांव में संदिग्ध हालात में मंजू की मौत हो गई तो उसे बोरी में बंद कर कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया था। यह दाश्तां यहीं खत्म नहीं होती बल्कि ऐसी ही कहानी पिछले साल मुरादाबाद जिले के कुढ़ फतेहगढ़ थाना क्षेत्र के अंतर्गत बिचौला डूकी गांव में पुलिस द्वारा तैयार की गयी। 9 मई 2009 को घर से लापता गुलाम हुसैन की बेटी अंजुम की तलाश पुलिस ने झील में तैरती हुयी एक लाश को अंजुम की बताकर केस का इतिश्री कर दी। केस खत्म होने कुछ ही दिन बाद 10 मई को धनारी में अंजुम जिंदा मिली और उसके प्रेमी जाहिद को गिरफ्तार कर लिया गया। सभी मामलों में एक ही बात सामने आई कि पुलिस ने जबरन शिनाख्त कराई। पुलिस ने कानून को अपने हिसाब से उपयोग किया। लेकिन अभी तक उच्च स्तर पर इन मामलों की समीक्षा और कार्रवाई की बातें सिर्फ अफसरों के बयानों तक सीमित हैं। अब देखना यह है कि इन केसों के मामलों में उच्च पदों पर आसीन उच्चाधिकारी क्या निर्णय सुनाते हैं?एडीजी कानून व्यवस्था ब्रजलाल का मानना है कि आजकल हत्याओं में विरोधियों को फंसाने का खेल चल रहा है। विशेष रूप से अज्ञात लाशें इसके लिए सहायक बनती जा रही हैं। उन्होंने आदेश दिया है कि अब हर अज्ञात लाश का अनिवार्य रूप से डीएनए कराया जाए। वे कहते हैं कि जब परिवार के लोग ही लाशों की शिनाख्त कर रहे हैं तो पुलिस क्या कर सकती है? किसी लाश की शिनाख्त के लिए परिवार पर दबाव के दावे की कोई वजह नहीं बनती। पुलिस अगर ऐसे हालात में शिनाख्त के वास्ते सबूत मांगेगी तो संवेदनहीन कहलाएगी। ऐसे मामलों में लापरवाही और धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया गया है। सबके लिए है कानूनवरिष्ठ अधिवक्ता एवं मेरठ बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अनिल बख्शी का कहना है कि वैसे तो कानून सबके लिए है, लेकिन कुछ लोग इसका दुरपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में पुलिस के खिलाफ मुकद्मा दर्ज कराया जा सकता है। पुलिस एक कत्ल केस को खत्म कर देती है। जिनकी लाश भी शिनख्त कर ली गयी लकिन बाद में वे जिंदा लौट आते हैं। ऐसे समय मरने वाले का केस बंद कर दिया जाता है। शिनाख्त की स्थिति में पुलिस इससे बच जाती है। मगर आईपीसी की धारा 212 में कोई भी व्यक्ति पुलिस के खिलाफ अपराधी और अपराध को छिपाने में मदद करने का मुकद्मा दर्ज करा सकता है जिसमें 7 साल की सजा का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि आज तक इस धारा के तहत दर्ज किसी भी मुकद्में में देश भर में कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्योंकि पुलिस के खिलाफ लोग पैरवी नहीं कर पाते हैं। इस लिए धरे-धीरे केस को बंद कर दिया जाता है। इसके परिणाम स्वरूप इस तरह की घटनाओं पर रोक लगने बजाय बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

1 comment:

  1. mahasey, logo ko pyaar karna sikha rahe hai, khap pancheyte inhe bhi katal na kar de...

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