Monday, August 16, 2010

बेचारे गरीब सांसद

चौंकिये नहीं! यह एक सच्चाई है। आज हमारे देश के सांसद कितने गरीब हैं इसका अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि दिन रात जनता के दुख दर्द में शामिल होने के बावजूद इनकी सेलरी मात्र 16,000 रुपये ही है। यह अलग बात है कि वह जनता के बीच जाते हैं या नहीं? वे आम जनता के प्रतिनिधि हैं या किसी और के भला एक सांसद का खर्चा सोलह हजार रुपये में कैसे चलेगा। इनके करोड़ों के फ्लैट और दो चार महंगी गाडिय़ां, ड्राइवर का वेतन, नौकर-चाकर आदि का खर्चा, क्या 16 हजार रुपये में पूरा हो सकता है। यह तो रहा सामान्य खर्चा, बाकी फाइवस्टार होटलों का खर्चा आखिर कहां से आयेगा? कमीशन और अन्य बैक फुट से हुई कमाई करोड़ों अरबों में होती है। लेकिन फिर भी वेतन तो वेतन होता है।  हमारे सांसदों का जो दर्द है वह यह है कि एक सेक्रेटरी का वेतन 80 हजार रुपये है और सांसद का मात्र सोलह। आखिर सेक्रेटरी का काम ही क्या होता है। वह दिन रात किताबें ही तो पढ़ कर आया है। और बैठे-बैठे लेखा-जोखा करता है। कुल मिला कर थोड़ा बहुत देश के हित में काम कर जाता है। जबकि हमारे सांसद तो करोड़ों रुपये दारू मुर्गा पर खर्च करके चुनाव जीतते हैं और बिना पूंजी लगाये लाभ वाले बिजनेस में शामिल हो जाते हैं। फिर भी जनता के ही प्रतिनिधि ही माने जाते हैं। आखिर उनका भी तो कोई सपना होता है। इतना ही नहीं बल्कि कितनों की हत्याएं भी करनी पड़ती हैं। आखिर इस पाप के प्रायश्चित के लिए भी तो पैसों की जरूरत होती है। वैसे तो पचास हजार रुपये महीना होने का प्रस्ताव है, लेकिन उतने में भी इन बेचारों का पेट भरने वाला नहीं है। अब इन्हें पांच गुना और चाहिए। 
सेलरी के अलावा सांसदों को संसद सत्र के दौरान या हाऊस की कमेटियों की मीटिंग के दौरान हर रोज के हिसाब से 1000 रुपये का भत्ता भी पाते हैं। सांसद इसे दोगुना करने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा संसदीय क्षेत्र का मंथली अलाउंस भी 20 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने की मांग कर रहे हैं। ऑफिस अलाउंस के तौर पर भी सांसदों को 20 हजार रुपये मिल रहे हैं। इसे भी बढ़ाने का प्रस्ताव है। अन्य सुविधाओं के तहत सांसद अपनी पत्नी या किसी दूसरे रिश्तेदार के साथ साल में 34 हवाई यात्रा कर सकते हैं। उन्हें किसी भी ट्रेन में किसी भी समय एसी फस्र्ट क्लास में पत्नी समेत यात्रा करने का पास भी मिलता है। इसके अलावा उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान मुफ्त में आवास सुविधा भी मिलती है। लेकिन इसके अलावे भी तो लोग हैं। जैसे आम लोगों का खून बहाकर चुनाव जिताने में मदद करने वालों, दादा परदादा के रिश्तेदारों और जो स्वर्ग सिधार गये हैं, उनके लिए भी तो सरकार को खर्चा देना चाहिए। क्योंकि ये जा ठहरे जनता के आदमी। वैसे जहां तक मेरा मानना है कि इनका वेतन तो नियमत: बढऩा ही चाहिए, क्योकि महंगाई जो इस कदर बढ़ रही है। रहा सवाल कारखानों में खटने वाले मेहनतकशों को तो उनका तो फर्ज है ही कि वे अपने और अपने बीबी बच्चों के पेट पर पट्टी बांध कर देश को आगे बढ़ाने में मदद करें। उन्हें वेतन मजदूरी बढ़ाने की चिंता करने की जरूरत ही क्या है। उसकी ङ्क्षचता तो सरकार में शामिल लोगों पर छोड़ दें। आखिर भगवान श्री कृष्ण जी ऐसे थोड़ी कह गये थे कि ''काम करो और फल की ङ्क्षचता मत करोÓÓ जो हमें गीता के माध्यम से उपदेश दिया जाता है। इस पर हमें अमल भी करना चाहिए, लेेकिन हम हैं कि बेवजह वेतन बढ़ाओ, वेतन बढ़ाओ की मांग करते रहते हैं और पुलिस की लाठियां भी खाते हैं। छोटी सी बात हमारी समझ में नहीं आती। लेकिन यह सब बातें हमारे सांसदों पर लागू नहीं होतीं। क्योंकि वे बेचारे तो हमारे प्रतिनिधि हैं और हमारा यह फर्ज बनता है कि हम अपना खून पसीना बहाकर उनका ख्याल रखें। इसके लिए अगर हमें भूखे भी रहना पड़े तो गलत नहीं। एक बार हमारे एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश को आगे बढ़ाने के लिए यदि जनता को अपनी पेट पर पट्टी भी बांधनी पड़े तो उसमें जनता को पीछे नहीं हटना चाहिए। लेकिन यह बात सिर्फ गरीब जनता पर लागू होती है, जनप्रतिनिधि पर नहीं। वैसे यह सरकार कौन है? आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।  
देश को उन्नत शिखर पर पहुंचाया
वाह मेरे प्यारे गरीब सांसद, मै आपके दुख दर्द को समझता हूं। आपने देश के लिए कितना बड़ा काम किया। आज हमारे देश के लोग घंटों में अमेरिका, रूस, चीन, जापान आदि पूरे विश्व में भ्रमण कर रहे हैं। फाइवस्टार होटलों में मुर्गा, कबाब, दारू और तमाम ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं। यह दीगर बात है कि लोग गांव से 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे शहर में जाने के लिए हजार बार सोचते हैं। क्योंकि वहां जाने के लिए 20 रुपये बस का किराया तक देने के लिए उनके पास नहीं होते। अब आप कहेंगे कि किराया नहीं है, साइकिल तो है। लेकिन साइकिल चलाने के लिए भी तो शरीर में ताकत होनी चाहिए। ताकत आयेगी कहां से? तो आप कहेंगे कि हरी सब्जी खाओ, दूध पियो और ताकतवर फल फू्रड खाओ। जनाब जरा सोचिए! इस महंगाई में फल खाना तो दूर देश की 70 प्रतिशत जनता नमक और मिर्च के साथ भी रोटी नहीं खा सकती। मिर्च भी अब 50 से 60 रुपये किलो है। रहा सवाल आटे का तो वह भी पांच किलो का पैकेट का दाम अब 105 रुपये हो गया है। उसके शरीर में ताकत कहां से आयेगी। वह साइकिल कैसे चला सकता है। यह तो स्वाभाविक ही है कि उनकी सेलरी  बढऩी ही चाहिए।  अब एक नजर डालते हैं देश की स्थिति पर। बेचारे सांसद अपनी सेलरी तो बढ़वाना चाहते हैं, लेकिन फैक्ट्री कारखानों में 14 से 18 सौ रुपये में दिन रात खटने वाले मेहनतकशों के बारे में सोचने का इनके पास फुर्सत ही नहीं है। और सोचें भी क्यों? इन्हें जनता से क्या लेना देना है। वे तो इनकी नजर में बस नाली के कीड़े हैं। जिसे जब चाहो कीटनाशक दवाओं की तरह कानूनी डंडे का छिड़काव करके बाहर कर दें। जनता तो हर पांच साल पर याद आती है। और उसके लिये तो यह पहले से ही सोच रखे हैं कि उनको मनाना बाएं हाथ का खेल है। यदि इस पर भी नहीं मानें तो करोड़ों रुपये का मुर्गा दारू खर्च करके अपराधियों से मनवा ही लिया जायेगा। और इसमें एक हद तक कामयाब भी हो रहे हैं। क्योंकि जनता के पास तो दूसरा कोई चारा भी नहीं है, इनमें से किसी एक को तो चुनना ही है। अब आप ही बतायें कि इनकी सेलरी बढऩी चाहिए या नहीं। यदि नहीं तो क्यों?

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