Wednesday, August 25, 2010

सावन के महीने में छोड़ देते हैं गांव

अंध विश्वाश के साए में जीते लोग
सिद्धार्थनगर। गौतम बुद्ध की पावन धरती पर रहने वाले लोग आज भी अंधविश्वाश के साये में में जी रहे हैं। पहले इसे नौगढ़ तहसील के नाम से जाना जाता था, जो वर्षों पहले बस्ती जनपद के अंतर्गत आता था। बाद में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल में इसे सिद्धार्थ नगर के नाम से जनपद का दर्जा मिला। सिद्धार्थ नगर नाम भी इसे गौतमबुद्ध की राजधानी कपिल बस्तु तथा उससे कुछ ही दूरी पर नेपाल में स्थित गौतमबुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी के नाम पर पड़ा। यह जनपद पहले से ही काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है, लेकिन जिला होने के बाद इसका विकास तो हुआ पर उसकी रफ्तार कछुआ चाल के बराबर थी। इस जिले के पिछड़े क्षेत्र के कुछ ऐसे ही गांवों की एक घटना का जिक्र करने जा रहे हैं।
सिद्धर्थनगर जिले के पांच गांव ऐसे हैं जो वर्ष के एक दिन पूरे के पूरे खाली हो जाते हैं। ऐसा नहीं कि जिले को ही छोड़ कर लोग बाहर चले जाते हैं, बल्कि गांव के बाहर पूजा-पाठ करते हैं। पूरे दिन बाहर ही पूजा पाठ करते हैं। शाम को भोजन करने के बाद पुन: घर लौटते हैं। इन लोगों का मानना है कि गांव के बाहर पूजा-पाठ करने से पूरा गांव बीमारी और प्राकृतिक आपदा से बचा रहेगा। यह और बात है कि गांव छोडऩे की इस कवायद से कोई लाभ नहीं होता है, जबकि देखने में आता है कि बीमारी और आपदा कमोबेस इन गांवों में ज्यादा ही आती हैं।
यह गांव इटवा तहसील क्षेत्र के खुखुड़ी, महादेव घुरहू, भावपुर पांडेय, सेहरी और धनधरा हैं। यहां यह परम्परा दशकों पुरानी है। हर साल इन गांवों के युवक, बूढ़े, बच्चे, महिलाएं सावन माह में शुक्ल पक्ष द्वितीया, मघा नक्षत्र को सूर्योदय होने से पहले ही गांव छोड़कर बाहर चले जाते हैं। पूरे गांव के लोग गांवों से कुछ दूरी पर स्थित भगहर पर इक_ा होकर देवी काली की पूजा-पाठ करते हैं। गांववासियों के दिन का भोजन भगहर पर ही होता है। सूर्यास्त के बाद लोगों का हुजूम एक बड़ी तादाद में घरों की तरफ रवाना होता है। इस वर्ष 11 अगस्त को भी गांव खुखुड़ी के ग्रामीणों ने गांव छोड़कर भगहर में पूजा-पाठ किया।

आखिर ऐसा क्यों करते है ग्रामीण?
खुखुड़ी के प्रधान मतई का कहना है कि गांव को हैजा, जमोगा, चेचक जैसी महामारियों से बचाने के लिये एक महात्मा ने ऐसा करने का उपाय बताया था। उसके बाद लोगों ने बाबा के बताये अनुसार भगहर पर इक_ा हो कर पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया। धीरे-धीर यह एक परम्परा बन गयी। जब उनसे पूछा गया कि क्या पूजा पाठ करने से बीमारियां नहीं होती हैं। उनका कहना था कि अभी भी बीमारियां होती हैं। लेकिन क्या करें पुरानी परंपराओं को तो निभाना ही है।

2 comments:

  1. bhai jai pratap ji hindustan ne chahe kitni bhi tarkki karli ho magar desh main abhi bhi ease na jane kitne sare sthan hai jyhan par andhvishwash bhot badi sankhya main hai. vastav main desh do hisson main bat gya hain.jiss main ek puri trah viksit aur dusra puri trah se pichda hua hai.

    ReplyDelete