Thursday, August 5, 2010

आज का श्रवण या कुछ और...

जय प्रताप सिंह

आज का श्रवण इस समय लगातार मीडिया में मुख्य खबर बनता जा रहा है। दूसरे धर्मों के लोग फूल मालाएं लेकर उसके सम्मान को निकल पड़े हैं। लोग बड़ी-बडी़ खबरें छापने से लेकर भारी-भरकम लेखों पर अपनी कलम चला रहे हैं। चैनलों का तो मानों बहार आ गया है। इस पर गौर करने की बात है कि आखिर यह कौन सा समय है जब लोग इन सब मसलों पर अपना समय नष्ट कर रहे हैं? क्या आज के समय में हमारे पास शिर्फ यही एक खबर है? क्या हमारे सामने भूख, बीमारी और कर्ज के बोझ तले दबकर हो रही मौतें खबर नहीं हैं? क्या हम इन चीजों को ही बढ़ावा देना चाहते हैं? क्या वही इक्के-दुक्के लोग ही बचे हैं जो अपने मां-बाप से प्यार करते हैं, या कुछ और----? इस पर भी सोचने की जरूरत है। आदि, आदि।
जुलाई माह के अंतिम और अगस्त माह की शुरुआत से ही पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सड़कों पर एक तरफ सड़कों पर कंधे में कांवड़ लिए तथा दूसरी ओर अपनी रोजी-रोटी के लिए, जिनके पास नौकरी करके अपने मां-बाप और बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने का और कोई साधन नहीं है, के बीच कांवड़ ही सबसे महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। लोग भी इसे सकारात्मक रूप में सराह रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कुछ नौजवानों को तो श्रवण कुमार बनने की हसरत भी है, जिनमें इक्के-दुक्के लोग श्रवण कुमार की तरह अपने कंधे पर जुआ लटकाए दोनों तरफ अपने मामा-पिता को बैठा कर लिए जाते हरिद्वार तक कांवड़ भरने जाते हैं। लोगों की निगाह उन्हीं नौजवानों पर टिक जाती हैं। उनके सामने बाकी सभी कुछ गौड़ हो जाता है। लोगों को यह कहते हुए भी सुना जाता है कि 'देखो! वह अपने माता-पिता को कितना प्यार करता है।Ó लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता, इसे चाहे बेवकूफी कहें या अपने मां-बाप के प्रति अमानवीय या कुछ और....। मैं कहना यह चाहता हूं कि क्या वह बेटा अपने मां-बाप को प्यार नहीं करता है जो दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम को अपने भूखे व बीमार मां-बाप और बच्चों के लिए भात, रोटी नमक और तरकारी का इंतजाम करता है? या वह नौजवान जो अपनी बीबी बच्चों की दवा और दो वक्त की रोटी कमाने में ही अपनी जिंदगी तबाह कर देता है, लेकिन न चाहते हुए भी अपने बूढ़े मां-बाप के साथ चंद समय भी नहीं निकाल सकता। यदि निकाल भी ले तो दूसरे दिन उसकी नौकरी पर भी तलवार लटकती दिखाई देती है। क्या इसको बढ़ावा देने से हजारों, लाखों नौजवानों ताने नहीं सुनने पड़ेंगे।
यह सब तो कुछ उसी तरह से है जब शाहजहां ने नुरजहां से इस कदर प्यार करता था कि उसकी मौत के बाद उसने आगरे का ताजमहल बनवा दिया। इसका मतलब तो यही हुआ कि शाहजहां ही एक ऐसा शख्श था जो प्यार करता था। बाकी लोग तो शिर्फ ढकोसला करते हैं। और हम भी उसी बहाव में बह जाते हैं। क्या हम यह नहीं सोच सकते कि शाहजहां का प्यार ही मात्र प्यार नहीं है बल्कि ऐसे लाखों लोगा हैं जो एक-दूसरे से इस कदर प्यार करते हैं कि एक-दूसरे के दुख तकलीफों में शेयर करते-करते अपनी जान तक दे देते हैं। लेकिन वह शाहजहां जैसे सुलतान या राजा नहीं थे कि ताजमहल बनवा सकें।
ठीक इसी तरह इक्के-दुक्के को छोड़ कर लाखों नौजवान ऐसे हैं जो अपने माता-पिता को इस कदर प्यार करते हैं कि उन्हें हरिद्वार ही क्या पूरे देश का सैर करवा सकें, लेकिन उनके सामन रोटी का संकट इस कदर हाबी होता है कि वे सैर कराना तो दूर उनके पास दो दिन रुकने का भी समय नहीं निकाल सकते। यदि दो दिन काम पर न जाएं तो मालिक काम पर से निकाल कर इस कदर फेंक देगा कि जैसे दूध से मख्खी।
वहीं दूसरी ओर पूरा का पूरा हाईवे जाम कर दिया जाता है जिससे आवागमन भी बाधित होता है। लोगों को फैक्टरी, कारखानों तथा कार्यालयों में पहुंचने के लिए भी घंटों की दूरियां तय करनी पड़ती हैं। यदि किसी को दवा इलाज के लिए कहीं बाहर जाना हो तो वह कांवड़ लौटने तक इंतजार करे या यमराज से बिनती करे कि भाई कुछ दिन का समय और दे दो फिर हम दवा करवा लेंगे। नहीं तो यमराज के पास जाने का रास्त तो हर समय खाली ही रहता है। वहां पर कोई भी जाम की स्थिति नहीं है। सोचने की बात यह है कि आज हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या रोजी-रोटी की है। दिन दूना रात चौगुनी की तरह महंगाई बढ़ती जा रही है। लोगों का जीना दूभर है। लोगों के पास यदि आमदनी 100 रुपये है तो खर्चा 150 रुपये। लेकिन सरकार को इन सबसे क्या लेना-देना है। उसके लिए तो सबसे जरूरी है इस समय धाॢमक मामलों में सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च पानी की की तरह बहा देना। इस तरह अरबों रुपये पानी की तरह बहाने के लिए सरकार के पास पैसों की कमी नहीं है लेकिन यदि महंगाई को कम करने की बात करें तो देश की हालत ही गंभीर हो जाती है। यह है हमारे देश की स्थिति। ऐसे समय में एक बेहतर ङ्क्षजदगी जीने के लिए हमें क्या करना होगा, इसके बारे में हमें सोचने की जरूरत है। यदि सबकुछ इसी तरह चलता रहा तो आने वाला समय कितना भयावह होगा सहज ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

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